भारत की वैश्विक रणनीति 2025: अजीत डोभाल का रूस दौरा, पीएम मोदी का चीन-ब्राज़ील प्लान और अमेरिका की टैरिफ चालें
🔰 भूमिका:
2025 भारत की वैश्विक कूटनीतिक भूमिका के लिए निर्णायक साल बनता जा रहा है। एक ओर भारत रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव गहराता जा रहा है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संभावित चीन और ब्राज़ील दौरा इस बात का संकेत है कि भारत अब Global South के नेतृत्व की भूमिका में खुलकर सामने आ रहा है।
इस लेख में हम इन तीन प्रमुख घटनाओं – अजीत डोभाल का रूस दौरा, पीएम मोदी की प्रस्तावित विदेश यात्रा, और भारत-अमेरिका टैरिफ टकराव – को विस्तार से समझेंगे।
🔎 1. अजीत डोभाल का रूस दौरा: रणनीतिक संतुलन की चुपचाप कोशिश
📌 पृष्ठभूमि:
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने अगस्त 2025 में रूस की राजधानी मॉस्को का दौरा किया। यह दौरा ऐसे समय में हुआ जब रूस-यूक्रेन युद्ध अभी भी समाप्त नहीं हुआ है और वैश्विक भू-राजनीति में बड़े बदलाव हो रहे हैं।
🧭 प्रमुख मुद्दे:
- S-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी प्रगति की समीक्षा।
- डिफेंस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर चर्चा।
- BRICS+ रक्षा समन्वय की संभावनाएं।
- भारत-रूस के बीच रुपया-रूबल व्यापार प्रणाली पर पुनर्विचार।
🛡️ रणनीतिक संदेश:
भारत रूस के साथ संबंधों को बनाए रखना चाहता है लेकिन चीन के प्रभाव को भी सीमित करने की रणनीति बना रहा है। इस दौरे ने अमेरिका को संकेत दिया कि भारत स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग है।
🌏 2. पीएम मोदी का प्रस्तावित चीन-ब्राज़ील दौरा: Global South की ओर भारत का झुकाव
चीन यात्रा (संभावित):
पीएम मोदी सितंबर 2025 में चीन के हांगझोउ में होने वाली BRICS प्लस समिट में शामिल हो सकते हैं। यह यात्रा महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि:
- भारत-चीन सीमा विवाद अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं है।
- पिछले वर्षों में चीन द्वारा NSG, UNSC में भारत की दावेदारी पर रोक।
- फिर भी भारत चीन के साथ आर्थिक और वैश्विक मंचों पर संवाद बनाए रखना चाहता है।
ब्राज़ील दौरा:
भारत ब्राज़ील में होने वाले G20 ग्लोबल साउथ लीडर्स समिट का हिस्सा बनेगा। यह Global South देशों की समृद्धि और दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को बढ़ावा देने की पहल है।
🛤️ भारत की प्राथमिकताएं:
- जलवायु न्याय, वैश्विक वित्तीय सुधार, और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दे।
- Global South में भारत की छवि एक नेता की तरह स्थापित करना।
- भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, और मिलिट्री डिप्लोमेसी को प्रोजेक्ट करना।
3. अमेरिका की टैरिफ चालें: भारत को चुनौती या अवसर?
📉 अमेरिका का निर्णय:
अमेरिका ने अगस्त 2025 में भारत के कुछ प्रमुख उत्पादों पर 25%+25% यानी कुल 50% टैरिफ शुल्क लगाने का ऐलान किया है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य था:
- घरेलू अमेरिकी कंपनियों की सुरक्षा।
- भारत से बढ़ते आयात को नियंत्रित करना।
🔍 किन उत्पादों पर असर:
- स्टील और एल्युमीनियम एक्सपोर्ट।
- ऑटो पार्ट्स और फार्मास्यूटिकल्स।
- डिजिटल सर्विस प्रोवाइडर्स को भी अप्रत्यक्ष प्रभाव।
📢 भारत की प्रतिक्रिया:
- WTO में शिकायत दर्ज की गई है।
- भारत ने अमेरिका से ट्रेड पैकेज पुनर्विचार की मांग की है।
- भारत संभावित रूप से अमेरिका से आने वाले कुछ उत्पादों पर रिटेलिएटरी टैरिफ लगा सकता है।

🧠 UPSC दृष्टिकोण: भारत की तीन-मुखी विदेश नीति
आयाम | रणनीति | संदेश |
---|---|---|
रूस | रणनीतिक रक्षा साझेदारी | वैश्विक बहुध्रुवीयता को समर्थन |
चीन-ब्राज़ील | Global South नेतृत्व | दक्षिणी देशों में भारत की साख |
अमेरिका | संतुलन और आत्मनिर्भरता | भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता नहीं छोड़ेगा |
भविष्य की संभावनाएं और संकट:
संभावना | जोखिम |
BRICS+ विस्तार | डॉलर पर निर्भरता घटेगी |
भारत-रूस रक्षा सहयोग | अमेरिका का नाराज़ होना संभव |
चीन से संवाद | चीन की विस्तारवादी नीति बनी रहेगी |
G20 और SCO में भारत की भूमिका | विश्व मंचों पर संतुलनकारी नीति जरूरी |
भारत का संतुलनकारी रणनीति: भविष्य की राह
भविष्य में वैश्विक राजनीति बहुध्रुवीय होती जा रही है, जहां अमेरिका एकतरफा टैरिफ लगा रहा है, चीन वैश्विक संस्थानों को चुनौती दे रहा है, और रूस सैन्य व ऊर्जा गठजोड़ बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत को अपनी रणनीति बेहद संतुलित, चतुर और बहुपक्षीय रखनी होगी।
भारत को चाहिए कि वह “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) को केंद्र में रखे, जिससे वह किसी एक ध्रुव के साथ पूरी तरह नहीं जुड़े। भारत को क्वाड (QUAD), ब्रिक्स (BRICS), SCO और IPEF जैसे मंचों का स्मार्ट उपयोग करते हुए व्यापार, सुरक्षा और तकनीक में अपने हितों की रक्षा करनी होगी।
रूस से रक्षा साझेदारी, अमेरिका से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और चीन से टकराव से बचते हुए व्यापार प्रबंधन—यह तीनों एक साथ करना भारत की कूटनीतिक कसौटी होगी। भारत को घरेलू उत्पादन, FTA (Free Trade Agreements) का विस्तार, और ऊर्जा-सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी।
निष्कर्ष: भारत को न किसी एक शक्ति का पिछलग्गू बनना है, न विरोधी। “सबसे दोस्ती, किसी से दुश्मनी नहीं”—यही भारत की भविष्य रणनीति होनी चाहिए।
🔄 आंतरिक लिंकिंग (Internal Linking):
- पढ़ें: India vs US Tariff War – 2025 का नया ट्रेड संकट
- जानें: Operation Mahadev – भारत की साइबर रणनीति
- देखें: Bharat Drone Shakti 2025 – आत्मनिर्भर भारत की उड़ान
📢 प्रधानमंत्री मोदी का बयान (अनौपचारिक):
“भारत आज न तो किसी का पिछलग्गू बनेगा, और न ही किसी दबाव के आगे झुकेगा। हमारी प्राथमिकता है – वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ समावेशी वैश्विक नेतृत्व।”
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
Q1. क्या भारत रूस के साथ रक्षा समझौते को और आगे बढ़ाएगा?
हां, S-400, Kalashnikov rifles और ड्रोन टेक्नोलॉजी पर सहयोग जारी है।
Q2. पीएम मोदी का चीन दौरा भारत-चीन संबंधों को कैसे प्रभावित करेगा?
यह यात्रा कूटनीतिक संवाद को पुनर्जीवित कर सकती है, लेकिन सीमा विवाद पर प्रगति अनिश्चित है।
Q3. अमेरिका के टैरिफ से भारतीय उद्योग को कितना नुकसान होगा?
MSMEs और निर्यातकों पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन सरकार वैकल्पिक बाजारों पर काम कर रही है।
Q4. क्या भारत Global South का नेतृत्व कर सकता है?
जी हां, भारत डिजिटल, स्वास्थ्य और क्लाइमेट डिप्लोमेसी के ज़रिए नेतृत्व करने की स्थिति में है।
🧑💼 लेखक परिचय:
सिद्धार्थ तिवारी
(Founder – Mudda Bharat Ka)
सिद्धार्थ UPSC विषयों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर गहन रिसर्च आधारित लेखन के लिए जाने जाते हैं। इनका उद्देश्य है – भारत के मुद्दों को आम जनता के लिए सरल और तथ्यपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना।

🏁 निष्कर्ष:
2025 में भारत की विदेश नीति बहुध्रुवीय दुनिया में अपनी मज़बूत स्थिति स्थापित करने की दिशा में बढ़ रही है। अजीत डोभाल की रणनीतिक सक्रियता, पीएम मोदी की बहुपक्षीय संवाद रणनीति, और अमेरिका के आर्थिक दबावों का संतुलित जवाब – ये सब मिलकर भारत को एक वैश्विक निर्णायक शक्ति के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
भारत के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह अमेरिका, रूस और चीन के साथ अपने संबंधों में संतुलन कैसे बनाए। अमेरिका का टैरिफ हमला एक चेतावनी है कि वैश्विक पटल पर व्यापार और भू-राजनीति अब पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राएं, BRICS और SCO की बैठकें, और टैरिफ नीति में बदलाव – यह सब मिलकर भारत की वैश्विक भूमिका को फिर से परिभाषित करेंगे।
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